मरने के बाद भी अपने कभी साथ नहीं छोड़ते!एक सच्ची घटना!

जय श्री राम दोस्तों,आज मैं आपके साथ अपने बचपन की एक सच्ची घटना शेयर कर रहा हूं!दोस्तों यह घटना सन उन्नीस सौ नब्बे की है,उस समय मैं और मेरा परिवार जम्मू-कश्मीर में रहता था,मेरे पापा फौजी थे,और उनकी उस समय लद्दाख में ड्यूटी चल रही थी,उस समय मेरी उम्र छह से सात साल के बीच होगी!ड्यूटी के दौरान पाकिस्तान से आई एक गोली मेरे पापा के सीने में जा लगी,और मेरे पापा शहीद हो गए,लगभग एक महीने तक मेरा,मेरी मम्मी का,मेरी बहनों का रो रो कर बुरा हाल था,एक महीने तक हमने पापा की आत्मा की शांति के लिए सभी प्रकार की पूजा पाठ विधिपूर्वक किया!
दोस्तों लगभग एक महीने के बाद ही पापा मुझे और मेरे परिवार को अपनी मौजूदगी का एहसास कराने लगे!जब भी हमारे घर में रिश्तेदार आते,और पापा का जिक्र होता,तो पापा किसी ना किसी तरीके से अपनी मौजूदगी का एहसास करा देते,जैसे कि कभी कमरे में पड़ा कुछ सामान अपने आप गिर जाता,तो कभी मम्मी के आगे बड़ी चाय की प्याली अपने आप हिल जाती!तब मेरे रिश्तेदारों ने एक विद्वान पंडित को हमारे घर बुलाया,और मेरी मम्मी ने पंडित जी को पापा की ओर से किए जा रहे इशारों की सब जानकारी दी!तब पंडित जी ने कहा कि दो दिन के अंदर अंदर एक पूजा करनी होगी, जिससे कि पापा की आत्मा को शांति मिल सके,दोस्तों पूजा के बाद भी हमारे घर में हरकतों का होना बंद नहीं हुआ,कभी रात को चलने फिरने की आवाज आती,तो कभी टीवी अपने आप ऑन हो जाता,कभी-कभी रात को सोते हुए धक्के लगते,जिससे हम सब जाग कर बैठ जाते,दोस्तों अब हम सब डरने लगे थे,तब एक दिन हम सब सुबह चाय पी रहे थे,कि अचानक मम्मी के चाय का कप अपने आप उछल कर गिर पड़ा,जिसके बाद मम्मी रोने लगी,तब मम्मी ने रोते हुए पापा को आवाज दी,और कहा कि आप खुलकर बताइए कि आप क्या चाहते हैं, आपकी हरकतों की वजह से हमारे बच्चे बहुत डरे डरे से रहते हैं,इसलिए मैं विनती करती हूं आपसे कि आप अपनी इच्छा बताएं,दोस्तों मम्मी का इतना कहना था कि पापा की आत्मा मेरी सबसे छोटी बहन के अंदर आ गई,और पापा की आवाज में रोने लगी,जिसे देखकर मेरी बड़ी बहन बहुत बुरी तरह डर गई और पड़ोसी के घर में चली गई,दोस्तों मैं जैसे ही अपनी बड़ी बहन के पीछे भागा,तो पापा ने मुझे आवाज दी,और कहां कि मेरे बच्चे मुझसे मत डर,मैं तेरा बाप हूं,अब तू ही मेरा आखरी सहारा है,मेरी आखरी उम्मीद है तू ही मेरी मुक्ति करेगा, दोस्तों मैं और मेरी मम्मी जोर जोर से रोने लगे,तब पापा ने मम्मी से कहा की मंदिर में जो गीता पढ़ी है,उस गीता का तीसरा अध्याय और नवा अध्याय मेरे बच्चे को कल से पढ़ने के लिए कहो,और पढ़ने के बाद यह कहे कि इस पाठ का फल मैंने अपने पापा को दिया,श्री विष्णु भगवान उनकी मुक्ति करें, इतना कहकर पापा मेरी बहन के शरीर से चले गए!
मम्मी ने मुझे सब बता दिया कि पाठ कैसे करना है और पाठ के बाद क्या कहना है!मैंने भी अगले ही दिन से पाठ करना शुरू कर दिया,दोस्तों अभी पाठ करते करते मुझे सिर्फ चार दिन ही हुए थे,पांचवे दिन मैं जैसे ही पाठ करने बैठा,कि कमरे के दरवाजे को अंदर से अपने आप कुंडी लग गई,जिससे कि मैं बहुत ज्यादा डर गया और मैंने मम्मी को आवाज लगाई,मम्मी भी कमरे के बाहर ही थी,और उन्होंने कहा कि डर मत पापा कुछ नहीं कहेंगे,वह कथा सुनने आए हैं तू बस पाठ कर!यह सुनकर मुझे थोड़ी सी हिम्मत आई और मैंने पाठ शुरू कर दिया,ऐसा लगातार तीस दिनों तक हुआ,पापा रोज मेरे पास बैठकर पाठ सुनते थे,एक महीने के बाद हमारे घर में हरकतों का होना बंद हो गया,और मम्मी को सपने में पापा ने आकर अपनी मुक्ति का मिलना बता दिया,और सब को खुश रहने का आशीर्वाद देकर चले गए!दोस्तों हर साल श्राद्ध के समय में जब तीसरा श्राद्ध होता है,उस दिन ऐसा लगता है जैसे मुझे किसी ने धक्का देकर उठा दिया हो, उस दिन हम पापा का विधिपूर्वक श्राद्ध करते हैं, और उसके बाद पापा आशीर्वाद देकर चले जाते हैं, दोस्तों जिंदगी में मेरा हर काम,मेरी हर सफलता के पीछे मेरे पापा ही हैं जो हर वक्त मुझे सपोर्ट करते हैं,तो दोस्तों उम्मीद करता हूं कि मेरे इस बचपन की सच्ची घटना से आप सभी को अपनों का प्यार समझ आ गया होगा!दोस्तों अगर पोस्ट अच्छी लगी हो तो लाइक,शेयर और फॉलो जरूर करना!जय श्री राम!

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